म्हारो सतगुरु कर निरवारो म्हारा

म्हारो सतगुरु कर निरवारो म्हारा,करम अभागी का भाग को।

सतगुरु कृपा से पाईया,अगम अगोचर भेद।
सात सिन्ध का मेला भया,सहज हि लखिया अलख को

पारस से पलटा भया,लोहा का कंचन होय।
दुविधा दुर्मति छोडिया,जब कागा का हंसा होय॥

शब्द सरति रहनि रहे,अष्ट पहर धुन लगाइया।
सत्य सरुप लखाईया,असो फिर नहि खाय काल॥

बहतै कि बैया पकडी,सतगुरु दिन दयाल।
हरिदास को डुबत तरायो,सेवक सिताराम॥

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