करम कि गति न्यारी

उधौ म्हारा करम कि गति न्यारी।

ताल तलैया को मिठो जल हे,समुन्दर कर दिनो खारी।
सुन्दर रुप दियो बगला को,कोयल कर दिनो कारी॥१॥

चतुर नार पुत्र बिन तरसे,फुवड जायी जायी हारी।
वैश्या औडे साल दुसाला,पतिव्रता फिरत उघारी॥२॥

मुरख राजा राज करत हे,पंडित दिन भिकारी।
छोटे नैन दिये हाथी को,रणे मे लडत अगाडी॥३॥

हम को योग भोग कुब्जा को,ऐसी लीला थारी।
श्री वैष्णव को दास गात है,भावी टरत ना टारि॥૪॥

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