बो मन शितल होय
वो मन शितल होय हो,जग मे बैरी कोई नही॥
साधु कहावे सोहेला,लडेगा सोइ निचा।
काचा फल पके नही,कबहु ना मिठा होय॥१॥
साधु कि चन्दन भावना,शितल जिनकर अंग।
आप सरि सबको लेखे,देता अपना रंग॥२॥
नदी मे का दोगला,रहता जल के माय।
अडवाई सडवाई पुर फिरे,ओख झुकना स काय॥३॥
लडता से टलता भला,जलता से जल होय।
कहे सिंगाजी पहचान जो, आवागमन ना होय॥૪॥
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