जो तु पियु कि लाडली
जो तु पियु कि लाडलि,अपनो कर लिजे,कलह कल्पणा छोड के।
पियु के मारग कठिन है,जैसे खाडा कि धार।
डिग मगे तो गिर पडे,कैसे उतरैगा पारा॥१॥
पियु का मारग सुगम है,तेरी चाल अनेडा।
नाचनो जाने ना बाबरी,कहे आँगन टेढो॥२॥
जब तु नाचन निकली,घुंघट फिर कैसा।
घुंघट का पट खोल दे,मत करो अंदेशा॥३॥
चंचल मन इत उत डोले,दुनिया लोक रिझावा।
सेवा जाने नही संत कि,कैसे उतरेगा पारा॥૪॥
पियु खोजत ब्रम्ह थके,सुर नर मुनि देवा।
कहे कबिर विचार के,कर ले सतसंगा॥५॥
टिप्पणियाँ