गणपति
विद्यन हरण गणराज हे ,संकर सुत देवा।
कोटी विद्यन टर जात है,गनपति को मनावा॥१॥
शिव सनकादिक सुमरिया,ब्रम्हा ने मनाया।
हरि सुमरे कारज सरे,सरस्वती गुन गाया॥२॥
रिधी-सिध्दि जिनके संग है,चरनो कि हो दासी।
चार पदारथ हाथ मे,कोटी गन्गा अौर कासी॥३॥
गण सुमरे कारज सरे,होवे लख अोर लाभ।
नबधा भक्ति देत है,गुण सर्व निधाना॥૪॥
चार भुजा मुख दन्त है ,गौरा का हो पुत्र ।
धन हो सिन्गाजी न सुमरिया ,देवा वेग पधारो॥५॥
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