संत सदा अति प्यारे
उधो मोहे संत सदा अति प्यारे,जाकि महिमा वेद उचारे।
मेरे कारण छोड जगत के भोग पदारथ सारे।
निशदिन ध्यान धरे हिरदय मे,सब जग काज बिसारे॥
मे संतन के पिछे चालू,जहा जहा संत सियारे।
चरण रज निज अंग लगाउ,शोधु गात हमारे॥
मै संतन का संत हमारे,संत न मुझसे न्यारे।
बिनु सतसंग मोहे नही पावे,कोटी यतन कर हारे॥
जो संतन के.सेवक जग मे,सो मम सेवक भारे।
ब्रम्हा नंद संतजन पल मे,भव बंधन सब टारे॥
टिप्पणियाँ