कबके भये वैरागी

 कब के भए बैरागी कबीर जी कब के भये बैरागी

 आदि अंत लव लागी कबीर जी कब के भये बैरागी !


 (१)नहीं था चंदा नहीं था सूरज नहीं था पवन और पानी 

 त्रिकुटी आसन वह भी नहीं था नहीं था पुरुष और नारी!


(२) धरती नहीं जब टोप सिलाया ,राम नहीं जब टीका

 महादेव का जन्म नहीं था जब का लिया झोली झंडा!


 (३)सतयुग में हमने पेरी पावडी , त्रेता घोटा लिन्हा

    द्वापर में हमने पाग सवारी कलयुग फिरा न व खंडा!


 (४) फिरता फिरता हम काशी आया, रामानंद गुरु पाया

   कहत कबीर सुनो भाई साधु हमने गुरु जस गुण गाया!

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