संजोनी

थारौ दुध छे केवल र्बम्ह संजीवन हर की कामधेनु रे!
कामधेणु तो आकाश रहती ,निर्गुण चारो चरती!
ञिवेणी को पानी पीती जहॉ उन मुनि करत गुठाण!
संजीवन हर..................!! (१)
सांझ पडे संजोनी घर आवे,ओहं बालो हुं करे!
मन बाछडो उलटो ध्यावे,मेलो छे पृेम को पानो!
संजोवनी हर की..............!!(२)
सतगुरू आसन दोहन बैठे, तुरिया दुहणो हाथ!
अनहद के घर घुम्मर बाजे,दुहत अखण्ड दिन रात!
संजीवनी हर...................!!(३)
बर्म्ह अगन पर दुध तपायो,छमा शांति लौ लागी!
गुरू शब्द को दही जमायो,निश्चय को दियो हे जमान!
संजोवनी हर....................!!(४)
चन्द सुरज की रांइ बनायी ,घट अन्दर लौ लागी!
दधि मथी न माखन तायो,निकल्यो छे सुमरन सार!!
संजोवनी हर.....................!!(५)
कामधेनू सतगुरू की महिमा,बिरला जन कोई पावे;
कह रिषी सुन्दर गुरूजी की कृपा,ज्योत म ज्योत समाय!
संजोवनी हर.....................!!(६)

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