संदेश

मना रे मन की या माला फेर जो

 म्हारा सांई सुमरत निज नाम मना रे मन की या माला फेर जो! १) गणिका काशी कब हो गई,एसा कब बोया कबीरा ने जाग रे! दान सुदामा ने कब हो दिया ,उनकी सहायता करें भगवान रे! मना रे मन की या माला फेर जो! २)राई दास गंगा कब हो गया,एसा कब गया पापाजी तीरथ सेनाभगत ने अधरस कब हो पिया, जिन्हें घर बैठे कराया स्नान! मना रे मन की या माला फेर जो! ३)सुया ने सेमल सेयईयो ,घनेरी लगईगओ आस रे! फूल्यो फिल्यो फल भांजियों,जिम मारी चोंच निकल्या कपास! मना रे मन की या माला फेर जो! ४) कहत कबीर सुनो भाई साधो,यो पद हे निर्वाण! यो पद की कोई करो खोजना , भव से हो जाओ पार ! मना रे मन की या माला फेर जो!

कौन बड़ा परिवारी, हम सम कोण बड़ा परिवारी

कौन बड़ा परिवारी, हम सम कोण बड़ा परिवारी ! सत्य है पिता धर्म है भ्राता , लज्जा है महतारी  सील बहन संतोष पुत्र है, क्षमा हमारी नारी ! आशा सासु तृष्णा है सारी ,लोभ मोह ससुरारी अहंकार है ससुर हमारे सो सब में अधिकारी  ज्ञानी  गुरु विवेकी चेला, सदा रहे ब्रह्मचारी  काम क्रौध दो  चोर बसत है ,जिन का डर है भारी मन दीवान सुरती है राजा , बुद्धि मंत्री है भारी  सत्य धर्म के बसे नगरिया कहत कबीर पुकारी

कबके भये वैरागी

 कब के भए बैरागी कबीर जी कब के भये बैरागी  आदि अंत लव लागी कबीर जी कब के भये बैरागी !  (१)नहीं था चंदा नहीं था सूरज नहीं था पवन और पानी   त्रिकुटी आसन वह भी नहीं था नहीं था पुरुष और नारी! (२) धरती नहीं जब टोप सिलाया ,राम नहीं जब टीका  महादेव का जन्म नहीं था जब का लिया झोली झंडा!  (३)सतयुग में हमने पेरी पावडी , त्रेता घोटा लिन्हा     द्वापर में हमने पाग सवारी कलयुग फिरा न व खंडा!  (४) फिरता फिरता हम काशी आया, रामानंद गुरु पाया    कहत कबीर सुनो भाई साधु हमने गुरु जस गुण गाया!

चली जा रही है उमर धीरे धीरे

चली जा रही है उमर धीरे धीरे  ! चली जा रही है उमर धीरे धीरे  ! करते रहोगे भैया भजन धीरे धीरे  तो वो मिल जाएगा भैया सजन धीरे धीरे चली जा रही है उमर धीरे धीरे  ! बचपन भी जाए जवानी भी जाए  बचपन भी जाए भैया जवानी भी जाए तो  फिर बुढ़ापे का असर होगा धीरे धीरे  बुढ़ापे का भैया असर होगा धीरे-धीरे चली जा रही है उमर धीरे धीरे  ! तेरे हाथ पांव में बल न होगा  तेरे हाथ पांव में बल न होगा  झुके गी भैया कमर धीरे-धीरे चली जा रही है उमर धीरे धीरे  ! बुराई को अपने प्यारे मन से हटा ले बुराई को अपने प्यारे मन से हटा ले  बन जाएगा भैया तेरा जीवन धीरे-धीरे चली जा रही है उमर धीरे धीरे  !

सदा शरण सुख पाऊ

सदा शरण सुख पाऊ गुरूजी हाऊ बहुरी न जल आऊँ गुरूजी हाऊ निंद्राआहार तज्यो म्हारा सामरथ,मुरती म सुरती मिलाऊ रेन दिवस सौ इक्कीस हजार , निरफल एक नी कोऊँ काम क्रोध मोह लोभ पुराणा, इ...

गुरु मै तो संसार को सुख भरमाई

गुरू मै संसार को सुख भरमाई, नाहक भरमणा खाई किनका लड़का न किनका भरतार,केतराक दिनकी सगाई कौन की कन्या बहिन भान्जी ,आरे भाई कौन काहे का जमाई माता पिता ने जलम दियो है, कर्म संगाती ...

बाला रे दुर खेलन मत जावो

बाळा रे दुर खेलण मती जावो सिंगाजी म्हारा लाड़ीला रे आसा बसी रया दूश्मन लोग बाबा रे पिंजर घड़ाई देवू घर माही रे आसा छुम छुम चलो आंगण माय सिंगा रे घर कुवा न घर बावड़ी रे आसा नि...